मैंने ऐसे कई लोग देखे हैं जो रिटायरमेंट के बाद भी पूरे सक्रिय रहते हैं। उनकी सक्रियता का क्या राज है? इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास इस लेख में किया है।
एक सज्जन मुझसे पूछने लगे, आपका कितना सेवाकाल शेष है ?
अभी काफी है, मैंने उत्तर दिया।
उन्होंने फिर पूछा, मेरा मतलब आपकी रिटायरमेंट कब है? कौन से साल में और कौन से महीने में। मैंने साल और महीना बतलाया तो उन्होंने कुछ हिसाब लगाया और बोले, आपकी उलटी गिनती शुरू हो गई है। केवल इतने साल, इतने महीने और इतने दिन बाकी रह गए हैं आपके।
तो इससे क्या फर्क पड़ता है ? मैंने जानना चाहा।
फर्क क्यों नहीं पड़ता? बहुत पड़ता है। जब आदमी को ये पता चलता है कि नौकरी के गिने-चुने दिन शेष रह गए हैं, तो वह समाप्त-सा ही हो जाता है, उन्होंने जोर देकर कहा।
रिटायरमेंट किस दिन होगी, ये तो पहले से ही पता होता है। जिस दिन व्यक्ति नौकरी शुरू करता है, उसकी सर्विस बुक में उसकी रिटायरमेंट की तारीख भी लिख दी जाती है। इस दृष्टि से तो व्यक्ति की उलटी गिनती नौकरी के प्रारंभ होने के साथ ही हो जाती है। उसे नौकरी प्रारंभ होने के साथ ही समाप्त-सा हो जाना चाहिए।
वैसे तो व्यक्ति के पैदा होने के साथ ही उसकी उलटी गिनती शुरू हो जाती है, क्योंकि जो पैदा हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है। तो क्या फिर जीना ही छोड़ दें? नहीं, मृत्यु के भय के कारण जीवन का त्याग नहीं किया जा सकता।
व्यक्ति हर हाल में अपने अंतिम क्षण तक जीने को अभिशप्त या वर प्राप्त है, लेकिन यदि जीवन क्वॉलिटी के साथ व्यतीत हो जाए तो कितना अच्छा हो। इसी प्रकार जब तक सेवाकाल का एक दिन भी शेष है, उसे महत्त्वपूर्ण मानते हुए केवल कर्म की ओर प्रवृत्त हुआ जाए। गीता में लिखा है, जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है और मृत्यु के बाद उसका पुनर्जन्म भी निश्चित है। अत: अपने अपरिहार्य कर्तव्यपालन में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए। जीवनक्रम में अपने कर्तव्य का पालन करते हुए शोकरहित रहना जरूरी है। कर्तव्य का पालन करते हुए यदि मृत्यु भी आए तो शोक नहीं करना चाहिए। जब मृत्यु को भी शोक का कारण नहीं माना गया है तो रिटायरमेंट कैसे शोक का कारण हो सकता है? यदि मृत्यु के बाद कोई पुनर्जन्म होता है, तो रिटायरमेंट के बाद की अवस्था उस पुनर्जन्म से कम नहीं मानी जानी चाहिए।
लोग प्राय: कहते हैं कि रिटायरमेंट के बाद सक्रिय जीवन का अवसान हो जाता है। मगर किसी महीने की अंतिम तारीख तक तो आप एकदम सक्रिय रहे, लेकिन अगले महीने की पहली ही तारीख को प्रात: उठते ही आप अचानक निष्क्रिय कैसे हो गए? यह वास्तव में हमारी सोच का दोष है। हमारी इसके लिए कंडिशनिंग हो चुकी है। इस स्थिति से उबरना जरूरी है। रिटायर हम नहीं होते, रिटायर होता है हमारा कमजोर मन और उसमें उत्पन्न विचार जो हमें रिटायर कर देते हैं।
सेवानिवृत्ति एक महत्वपूर्ण परिवर्तन है। यह एक नए जीवन की शुरुआत ही नहीं, बल्कि पुनर्जन्म है। जीवन में हर नया पल, हर परिवर्तन पुनर्जन्म ही होता है और हम इतनी बड़ी घटना को तटस्थ होकर देख रहे हैं, पर इसे पुनर्जन्म के रूप में स्वीकार नहीं कर रहे। प्रसव शारीरिक रूप से एक कष्टप्रद स्थिति है, लेकिन प्रसव के बाद नारी का पुनर्जन्म ही तो होता है, जो अत्यंत आनंदप्रद स्थिति है। आप भी रिटायरमेंट को प्रसव के बाद की अवस्था या पुनर्जन्म की तरह लीजिए।
ये तो सिर्फ हमारी एक धारणा है कि साठ वर्ष के बाद व्यक्ति की क्षमता कम हो जाती है, अत: सेवानिवृत्ति हो जानी चाहिए। परिवर्तन सृष्टि का नियम है। मनुष्य का जीवन भी परिवर्तन से अछूता नहीं रहता। रिटायरमेंट किसी अवस्था विशेष की स्थिति नहीं है, बल्कि हर क्षण घटित होने वाली स्थिति है। जब भी मौका मिले, रिटायर हो जाइए - लेकिन अपने कमजोर मनोभावों तथा विकारों से। रिटायरमेंट एक परिवर्तन है। एक नई शुरुआत है, एक बेहतर और नए जीवन की शुरुआत।