आज की व्यस्त दुनिया में हम पर चारों तरफ से आवाजों का हमला होता रहता है - फोन की घंटियां, बीपर, आपस में बहस करते सहयोगी। ऐसी परिस्थिति में चुप्पी बड़ी अजीब लगती है और मजबूरन हमारा ध्यान उसकी तरफ खिंचता है।
अक्सर चुप्पी को हम कम करके आंकते हैं, उसका इस्तेमाल भी बहुत कम करते हैं। लेकिन इसका कई तरह से इस्तेमाल हो सकता है और यह निर्भर करता है उसकी लंबाई पर :
- बिजनेस मीटिंग के दौरान हल्का सा पॉज आप को अपनी भावनाओं पर काबू पाने का मौका देता है। खासतौर पर जब आप किसी नाराज क्लाइंट से बात कर रहे हों या किसी 'खराब' ईमेल का जवाब दे रहे हों।
- बिजनेस लीडर कमरे या मीटिंग हाल में घुसते समय चुप्पी का इस्तेमाल अपना असर जमाने के लिए करते हैं। साथ ही वह ऐसा करके खुद को माहौल के हिसाब से ढाल रहे होते हैं।
- मीटिंग्स के दौरान भी बिजनेस और पॉलिटिकल लीडर भी अक्सर पॉज लेते हैं। इससे यह जाहिर होता है कि वे गंभीरता से सोच समझकर बोल रहे हैं, हड़बड़ी में कोई फैसला नहीं ले रहे।
- एक वक्ता के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि किसी वाक्य के बीच में एक विशेष स्थान के पहले या बाद में थोड़ा से रुकने का बड़ा नाटकीय असर होता है। इससे बातचीत की एकरसता टूटती है साथ ही आपको सांस लेने का मौका मिलता है। दूसरी तरफ श्रोताओं को भी आपकी कही बात समझने का अवसर मिलता है। किसी कमिडियन से पूछिए कि लोगों को हंसाने में सही समय पर पॉज लेने की कितनी अहमियत है। - जब आप अपने क्लाइंट को कुछ बेचने की कोशिश कर रहे होते हैं उस समय भी पॉज लेने से आपके क्लांइट को डील पर सोचने का टाइम मिल जाता है।
- किसी क्लाइंट को डिस्काउंट देते समय पॉज लेने से लगता है कि आपने सोच समझकर इस फैसले पर पहुंचे हैं।
- दूसरे समाज या संस्कृति के लोगों से बातचीत करते समय भी चुप्पी का विशेष महत्व है। मसलन, हम भारतीय लोग तेज बोलते हैं इसलिए हमें बीच बीच में पॉज लेने की अहमियत समझनी चाहिए। वहीं जापानी लोग चुप्पी का असरदार तरीके से इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अमेरिकन लोगों को बातचीत में गैप पसंद नहीं है। कई एशियाई सभ्यताओं में दूसरे की चुप्पी को नजरअंदाज करना बुरा समझा जाता है।
- जब आप अपना परिचय दे रहे होते हैं या फिर वॉयसमेल छोड़ते समय अपने नाम और मेसेज के बीच में थोड़ा गैप रखने से दूसरों को आपका नाम और संदेश ठीक से समझ आता है।
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