The weak can never forgive. Forgiveness is the attribute of the strong
- Mahatma Gandhi
Always forgive your enemies - nothing annoys them so much
- Oscar Wilde
When we hate our enemies, we are giving them power over us; power over our sleep, our appetites, our blood pressure, our health, and our happiness. Our enemies would dance with joy if only they knew how they were worrying us, lacerating us, and getting even with us! Our hate is not hurting them at all, but our hate is turning our own days and nights into a hellish turmoil
- Dale Carnegie
In the age of Friendship day, Mother's day, Father's day, Women's day, No Tobacco day, etc.. should we not celebrate a Forgiveness Day to remind ourselves that we better cool down the rising tempers on the roads, homes, and workplaces?
I came across an interesting article, in which Veer Sagar Jain says that the virtue of forgiveness is taught in all the religions the world over and it is in the core of ancient Indian culture. He proposes that Kshamavani has the potential of being our national festival.
Here are some excerpts from the great article:
वृक्ष के मूल की भांति क्षमा संपूर्ण वैदिक धर्म का मूल है। क्षमा के कारण ही वैदिक धर्म इतना उदार, सहिष्णु और व्यापक सिद्ध हुआ है। ग्रंथों में (उपनिषदों और पुराणों में) कदम-कदम पर क्षमा की श्रेष्ठता के गीत गाए गए हैं।
क्षमा के महत्व को सभी धर्मों ने स्वीकार किया है। जब श्रीकृष्ण की मृत्यु जंगल में जर के बाण से हुई, कृष्ण उस व्याध से तनिक भी नाराज नहीं हुए और उन्होंने उसे क्षमा कर दिया। कृष्ण की भांति ईसा मसीह ने भी सूली पर चढ़ते हुए कहा था, 'हे ईश्वर! इन्हें क्षमा करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।' इसी प्रकार कुरान शरीफ में भी क्षमा के महत्व को रेखांकित करने वाली अनेक बातें कही गई हैं, यथा - 'जो गुस्सा पी जाते हैं और लोगों को माफ कर देते हैं, अल्लाह ऐसी नेकी करने वालों से प्यार करता है।' (कुरान शरीफ : 3/134) और 'जो वक्त पर धैर्य रखे और क्षमा कर दे, तो निश्चय ही यह बड़े साहस के कामों में से एक है।' (कुरान शरीफ : 42/143)
क्रोध सभी के लिए अहितकारी है और क्षमा सदा, सर्वत्र सभी के लिए हितकारी होती है। गुरु गोविंद सिंह जी एक जगह कहते हैं, 'यदि कोई दुर्बल मनुष्य तुम्हारा अपमान करता है तो उसे क्षमा कर दो क्योंकि क्षमा करना वीरों का काम है।'
हमारे पास अपना राष्ट्र्रीय ध्वज है , राष्ट्रीय प्रतीक है , राष्ट्रीय पशु है और राष्ट्रीय पक्षी भी है , पर क्या एक राष्ट्रीय पर्व भी नहीं होना चाहिए ? होना चाहिए , अवश्य होना चाहिए और वह भी हमारी महान संस्कृति के अनुरूप ही महान होना चाहिए। इसके लिए क्षमावाणी जैसा पर्व सर्वाधिक उपयुक्त हो सकता है। यद्यपि लोग इसे जैन पर्व समझते हैं , पर क्षमा एक सार्वजनिक विचार है। वह किसी समाज या जाति विशेष की बपौती नहीं हो सकती।
क्षमावाणी एक ऐसा निर्विवाद पर्व हो सकता है , जो भारतीय संस्कृति के अनुरूप हमारा राष्ट्रीय पर्व सिद्ध होगा। इतना ही नहीं , यदि आगे बढ़कर देखें तो वैश्वीकरण के इस दौर में ' विश्व पर्व ' बनने की क्षमता भी इस पर्व में निहित है
Bahut sunder rachna..
ReplyDeleteThanks a lot Shubha ji
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