तृष्णा का कोई अंत नहीं होता



I came across this beautifully story that teaches a vital lesson of detachment with worldly possessions. I really liked the story and would like to remind myself of this lesson again and again.

एक दिन मैंने अजीब सपना देखा। सपने में मैं ऐसा भिखारी हूं जिसने अपनी सारी उम्र की कमाई एक-एक पैसा जोड़ कर एक स्वर्ण मुद्रा खरीदी। फिर उस मुद्रा को ले कर मैं एक सेठ की हवेली के पास जा पहुंचा। सेठ ने मुझे भिखारी के वेष में देख कर हवेली का द्वार बंद करना चाहा। मैंने उसी समय वह स्वर्ण मुद्रा उसके द्वार पर गिरा दी। सेठ को बड़ा आश्चर्य हुआ। एक भिखारी के पास यह स्वर्ण मुद्रा भला कहां से आ गई?

मैंने उनके मन की बात सुन ली थी। उसके जवाब मैंने कहा- 'सेठ जी आज मैं भीख मांगने नहीं बल्कि एक सौदा करने आया हूं।' सेठ विस्फरित नेत्रों से मुझे देखते हुआ बोला- 'भिखारी होकर मुझसे सौदा करेगा?' मैंने विनय पूर्वक प्रार्थना की-'हां, आपसे सौदा करना है मुझे। नगर सेठ मैंने सारी जिंदगी एक-एक पैसा जोड़ कर यह एक स्वर्ण मुद्रा खरीदी है। इसी को लेकर मैं आपसे सौदा करने आया हूं। यह स्वर्ण मुद्रा आप ले लें और बदले में, अपना खजाना मुझे मात्र एक घंटे के लिए दिखा दें। आपके खजाने से मैं एक पाई भी नहीं लेना चाहूंगा।'

सेठ को यह सौदा मुनाफे का लगा। उसने सोचा अजब पागल भिखारी है, जो सिर्फ एक घंटा मेरे खजाने को देखने भर के लिए अपने जीवन भर की कमाई मुझे सौंप रहा है। सेठ स्वर्ण मुद्रा लेकर मुझे अपने घर के भीतर ले गया। उसने अपने खजाने के द्वार मेरे लिए खोल दिए। मैंने जी भर कर खजाना देखा और जोर-जोर से चिल्लाकर कहने लगा- 'यह खजाना मेरा है, यह मेरा खजाना है।'

मेरे इस तरह चिल्लाने पर सेठ मुझ पर बड़े जोर से हंसा और बोला-'पागल, पहली मूर्खता तो तूने यह की कि अपनी जीवन भर की कमाई स्वर्ण मुद्रा गवां कर इस खजाने को देखने आया और दूसरी मूर्खता तू यह कर रहा है कि मेरे खजाने को अपना कह रहा है। कहीं तू सच में कोई पागल तो नहीं है?'

मैने सेठ को जबाब दिया- 'सेठ मैं एकदम भला चंगा हूं। एक घंटे तक मैं इस खजाने के भीतर हूं और उसको देख कर इसे मैं अपना कह रहा हूं। मुझ में और और आप में सिर्फ इतना ही फर्क है कि इस खजाने को आप कुछ वर्षों तक देखने के बाद अपना कह रहे हैं, और मैं सिर्फ एक घंटा देखने के बाद अपना कह रहा हूं। न यह खजाना मेरा है और न ही आपका है। मुझे एक घंटे के बाद यहां से चला जाना है और आपको कुछ वर्षों के बाद जाना है। मजेदार बात तो यह है कि किसी भी हालत में यह खजाना न मेरे साथ जाना है और न आपके साथ। मेरी तरह आप भी इसे देखते ही रहे। किसी सदुपयोग में तो आपने इसे कभी लगाया नहीं।'

ठीक इसके बाद मेरी आंख खुल गयी। न वहां कोई सेठ मौजूद था और न कोई खजाना। सपना भले ही टूट गया, लेकिन एक बहुत बड़ी सीख मुझे दे गया | आदमी की इच्छाओ की अठखेलियां ही निराली हैं। गरीब दुखी है कि उसके पास कुछ भी नहीं है और धनवान सब कुछ होते हुए भी संतुष्नट नही | तृष्णा का कोई अंत नहीं है। इस पर उम्र का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह एक सुखी मनुष्य का मन भी दुखों से भर देती है। व्यक्ति के जीवन को आनंद विहीन कर देती है। पेट भरना मनुष्य की आवश्यकता है। परंतु पेटी या खजाना भरना उसकी तृष्णा है। सुखी होने के लिए हम सभी को इसी तृष्णा से बचने का उपाय करना है।

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