अरविन्द और अनिल को बचपन से ही एक दूसरे की बात समझने मे बहुत कठिनाई
होती है। बचपन में एक बार दोनो डाक्टर-मरीज़ खेल रहे थे, अनिल डाक्टर बना और
अरविन्द मरीज बनकर उसके पास पहुँचा:
अनिल: तबियत कैसी है?
अरविन्द: पहले से ज्यादा खराब है।
अनिल: दवाई खा ली थी?
अरविन्द: खाली नहीं थी भरी हुई थी।
अनिल: मेरा मतलब है दवाई ले ली थी?
अरविन्द: जी आप ही से तो ली थी।
अनिल: अरे भाई! दवाई पी ली थी?
अरविन्द: नहीं जी दवाई नीली थी।
अनिल: ओफ्फोह! दवाई को पी लिया था.?
अरविन्द: नहीं जी पीलिया तो मुझे था।
अनिल: हूज़ूरे आला! दवाई को खोल के मुँह में रख लिया था?
अरविन्द: नहीं आप ही ने तो कहा था कि फ्रिज में रखना।
अनिल: ज़नाब क्या मार खाने का इरादा है?
अरविन्द: नहीं दवाई खानी है।
अनिल: मेहरबानी करके यहाँ से निकल जाईये।
अरविन्द: जा रहा हूँ, फिर कब आऊँ?
अनिल: मरने के बाद।
अरविन्द: आपके या मेरे?
अनिल: तबियत कैसी है?
अरविन्द: पहले से ज्यादा खराब है।
अनिल: दवाई खा ली थी?
अरविन्द: खाली नहीं थी भरी हुई थी।
अनिल: मेरा मतलब है दवाई ले ली थी?
अरविन्द: जी आप ही से तो ली थी।
अनिल: अरे भाई! दवाई पी ली थी?
अरविन्द: नहीं जी दवाई नीली थी।
अनिल: ओफ्फोह! दवाई को पी लिया था.?
अरविन्द: नहीं जी पीलिया तो मुझे था।
अनिल: हूज़ूरे आला! दवाई को खोल के मुँह में रख लिया था?
अरविन्द: नहीं आप ही ने तो कहा था कि फ्रिज में रखना।
अनिल: ज़नाब क्या मार खाने का इरादा है?
अरविन्द: नहीं दवाई खानी है।
अनिल: मेहरबानी करके यहाँ से निकल जाईये।
अरविन्द: जा रहा हूँ, फिर कब आऊँ?
अनिल: मरने के बाद।
अरविन्द: आपके या मेरे?
No comments:
Post a Comment
Did you like this post? Please leave a comment - your feedback gives me encouragement for writing. Please subscribe to my blog to support it. - Sanjay