Positive thoughts are like good seeds


A Great thought by Sitaram Gupta:

एक किसान फसल काटने के बाद सबसे पहले जो काम करता है, वह है अगली फसल के लिए उनमें से सर्वोत्तम बीजों का चुनाव करना और उन्हें सुरक्षित भंडार घर में रख देना। किसान की तरह हमें भी अपने मन में केवल सर्वोत्तम विचारों का ही भंडारण करना चाहिए। जिस प्रकार उत्तम बीजों से उत्तम फसल पाई जा सकती है, उसी प्रकार सकारात्मक सोच रूपी बीज ही उचित अवसर पाकर व्यक्ति तथा समाज के लिए उत्तम सृजन करते हैं।

मनुष्य के मन में हर क्षण असंख्य विचार उत्पन्न होते रहते हैं, जिनमें से कुछ विचार सकारात्मक या उपयोगी होते हैं तो कुछ नकारात्मक या अनुपयोगी। वैसे ज्यादातर विचार निरर्थक ही होते हैं। यदि वे सब विचार प्रभावी होने लगें तो हमारा जीवन नरक बन जाएगा। इसलिए विचारों के चयन में भी हमें सदा सचेत रहना चाहिए। हमें प्रयास करके सकारात्मक व उपयोगी विचारों का चयन कर मन के हवाले कर देना चाहिए।

कोई व्यक्ति क्या सोचता है, यह महत्वपूर्ण है, न कि क्या करता है अथवा कैसा दिखता है। वास्तव में व्यक्ति क्या कर रहा है अथवा कैसा दिख रहा है, यह उसकी पूर्व सोच का ही परिणाम है। उसकी पिछली सोच ने ही उसके वर्तमान का निर्माण किया है। चाहे व्यक्ति का भौतिक शरीर हो, उसकी वर्तमान आर्थिक स्थिति हो, उसका जीवन के प्रति दृष्टिकोण हो या वर्तमान मनोवृत्ति -ये सब उसकी पिछली सोच से निर्मित हुई चीजें हैं। यही कर्मफल का सिद्धांत है। जैसा बोओगे वैसा काटोगे।

सोच भी वह बीज ही तो है, जिसकी फसल सोचने वाले को कर्मफल के रूप में काटनी पड़ती है। अच्छी सोच रूपी बीज बोओगे तो उसी के अनुरूप अच्छे व्यक्तित्व, अच्छे स्वास्थ्य, अच्छे संस्कार और सुख-समृद्धि रूपी अच्छी फसल काट पाओगे। अपनी सोच को बदल कर उसे सकारात्मकता प्रदान कर हम अपने सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं तथा विकारों से मुक्ति पा सकते हैं, इसमें संदेह नहीं। दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं, इसका हम पर कोई असर नहीं पड़ता, बल्कि हमारी अपनी सोच ही हमें और दूसरों से हमारे व्यवहार को निर्धारित करती है।

हर बार हर किसान के खेत में अच्छी फसल नहीं होती। कई बार फसल कमजोर होती है तो कई बार बीजों में कीड़े वगैरह लग जाते हैं। ऐसे में वो बड़ी समझदारी से काम लेता है। कोई किसान घुन लगे या कमजोर बीज कभी नहीं बोता। अगले साल बोने के लिए वह दूसरों से अच्छे बीज मांग कर लाता है।

विचारों का उद्गम स्थल है हमारा मन। अत: मन पर नियंत्रण द्वारा हम गलत विचारों पर रोक लगा सकते हैं तथा अच्छे विचारों से मन को आप्लावित कर सकते हैं। यदि जीवन रूपी बगिया को सुंदर बनाना है, उसे रंगों से सराबोर करना है, तो मन रूपी बगिया में हमेशा सकारात्मक सोच के पौधे लगाइए।

प्राय : कहा जाता है कि पुरुषार्थ से ही कार्य सिद्ध होते हैं , मन की इच्छा से नहीं। बिल्कुल ठीक बात है। लेकिन मनुष्य पुरुषार्थ कब करता है और किसे कहते हैं पुरुषार्थ ? पहली बात तो यह है कि मन की इच्छा के बिना पुरुषार्थ भी असंभव है। मनुष्य में पुरुषार्थ या हिम्मत अथवा प्रयास करने की इच्छा भी किसी न किसी भाव से ही उत्पन्न होती है। और सभी भाव मन द्वारा उत्पन्न तथा संचालित होते हैं। अत : मन की उचित दशा अथवा सकारात्मक विचार ही पुरुषार्थ को संभव बनाता है। पुरुषार्थ के लिए उत्प्रेरक तत्व मन ही है।

जिस प्रकार वृक्ष के उगने के लिए बीज अनिवार्य है , उसी प्रकार हर कार्य के मूल में एक बीज होता है और वह है विचार। जैसा बीज , वैसा पौधा तथा जैसा विचार वैसा कर्म। मनुष्य हर कर्म किसी न किसी विचार के वशीभूत ही करता है। जैसे विचार वैसे कर्म तथा जैसे कर्म वैसा जीवन। विचार ही हमारे जीवन की दशा और दिशा निर्धारित करते हैं।

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