काँच और हीरा

एक राजा का दरबार लगा था।

क्योंकि सर्दी का दिन था इसलिये दरबार खुले मे लगा था.सभी सुबह की धूप मे बैठे थे।

उसी समय एक व्यक्ति आया और प्रवेश माँगा..

प्रवेश मिल गया तो उसने कहा, "मेरे पास दो वस्तुएं हैं, मै हर राज्य के राजा के पास जाता हूँ और अपनी वस्तुओं को रखता हूँ पर उन्हें कोई परख नही पाता, सब हार जाते है और मै विजेता बनकर घूम रहा हूँ।  अब आपके नगर मे आया हूँ |"

राजा ने बुलाया और कहा “क्या वस्तु है?”

तो उसने दोनो वस्तुएं एक मेज पर रख दीं..

वे दोनों वस्तुएं बिल्कुल समान आकार, समान रुप रंग, समान प्रकाश सब कुछ नख-शिख समान था।

राजा ने कहा ये दोनो वस्तुएं तो एक हैं |

तो उस व्यक्ति ने कहा,"हाँ दिखाई तो एक सी ही देती है लेकिन हैं भिन्न |

इनमें से एक है बहुत कीमती हीरा,और एक है काँच का टुकडा। लेकिन दोनों का रूप रंग सब एक है | कोई आज तक परख नही पाया क़ि कौन सा हीरा है और कौन सा काँच का टुकड़ा | कोई परख कर बताये कि कौन सा हीरा है और कौन सा काँच ?

अगर परख खरी निकली...
तो मैं हार जाऊंगा और यह कीमती हीरा मै आपके राज्य की तिजोरी मे जमा करवा दूंगा |

पर शर्त यह है क़ि यदि कोई नहीं पहचान पाया तो इस हीरे की जो कीमत है उतनी धनराशि आपको
मुझे देनी होगी |

मैं इसी प्रकार से कई राज्यों से जीतता आया हूँ |"

राजा ने कहा,"मै तो नही परख सकूगा |"

दीवान बोले,"हम भी हिम्मत नही कर सकते क्योंकि दोनो बिल्कुल समान हैं |"

सब हारे कोई हिम्मत नही जुटा पा रहा था |

हारने पर राजा की प्रतिष्ठा गिर जायेगी, इसका सबको भय था |

कोई व्यक्ति पहचान नही पाया...


आखिरकार पीछे थोडी हलचल हुई |

एक अंधा आदमी हाथ मे लाठी लेकर उठा और उसने कहा कि मुझे महाराज के पास ले चलो |

मैने सब बाते सुनी है, और यह भी सुना है कि, कोई परख नही पा रहा है|

एक अवसर मुझे भी दो...

एक आदमी के सहारे वह राजा के पास पहुंचा |

उसने राजा से प्रार्थना की, "मै तो जनम से अंधा हू, फिर भी मुझे एक अवसर दिया जाये, जिससे मै भी एक बार अपनी बुद्धि को परखूँ, और हो सकता है कि सफल भी हो जाऊं |"

राजा ने कहा क़ि ठीक है |

तो तब उस अंधे आदमी को दोनो चीजे छुआ दी गयी और पूछा गया |

इसमे कौन सा हीरा है और कौन सा काँच ?

कथा कहती है कि उस अंधे आदमी ने एक क्षण में बता दिया कि यह हीरा है और यह काँच !!

जो आदमी इतने राज्यो को जीतकर आया था, वह नतमस्तक हो गया और बोला..

“एकदम सही है! आपने पहचान लिया ! धन्य हो आप !!

अपने वचन के मुताबिक यह हीरा मै आपके राज्य की तिजोरी मे दे रहा हूँ"

सब बहुत खुश थे कि कम से कम कोई तो मिला परखने वाला |

तब राजा ने उस अंधे व्यक्ति से एक जिज्ञासा जताई कि तुमने यह कैसे
पहचाना कि यह हीरा है और वह काँच ?

अंधे ने कहा:

"सीधी सी बात है राजन, धूप मे हम सब बैठे है | मैने दोनो को छुआ..
जो ठंडा था वह हीरा |
जो गरम हो गया वह काँच |"

मानव जीवन मे भी..
जो बात बात मे गरम हो जाये, उलझ जाये..
वह व्यक्ति "काँच" हैं

और
जो विपरीत परिस्थिति मे भी कूल रहे..
वह व्यक्ति "हीरा" है !!

2 comments:

  1. वाह ,संजय जी ,बहुत ही प्रेरक कहानी है । सही में ,सही परख करनी आ जाए तो बहुत सी बातें तो यूँ ही हल हो जाएँँ ।

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