मेरी दिल्ली से पुणे की फ्लाइट उड़ान भर चुकी थी | मेरे साथ में एक वृद्ध दंपत्ति बैठा हुआ था | पत्नी खिड़की की ओर बैठी थीं, पति बीच में और मै आयेल की सीट पर था।
सज्जन की उम्र करीब 80 साल रही होगी। मैंने पूछा नहीं लेकिन उनकी पत्नी भी 75 पार ही रही होंगी। उम्र के असर को छोड़ दें, तो दोनों करीब करीब फिट लग रहे थे।
उड़ान भरने के साथ ही पत्नी ने कुछ खाने का सामान निकाला और पति की ओर किया। पति कांपते हाथों से धीरे-धीरे खाने लगे। फिर फ्लाइट में जब भोजन सर्व होना शुरू हुआ तो उन लोगों ने राजमा-चावल का ऑर्डर किया। दोनों बहुत आराम से राजमा-चावल खाते रहे। मैंने पता नहीं क्यों पास्ता ऑर्डर कर दिया था। खैर, मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है कि मैं जो ऑर्डर करता हूं, मुझे लगता है कि सामने वाले ने मुझसे बेहतर ऑर्डर किया है।
अब बारी थी कोल्ड ड्रिंक की। पीने में मैंने कोका कोला का ऑर्डर दिया था। अपने कैन के ढक्कन को मैंने खोला और धीरे-धीरे पीने लगा।
उन सज्जन ने कोई जूस लिया था। खाना खाने के बाद जब उन्होंने जूस की बोतल के ढक्कन को खोलना शुरू किया तो ढक्कन खुले ही नहीं। सज्जन कांपते हाथों से उसे खोलने की कोशिश कर रहे थे। मैं लगातार उनकी ओर देख रहा था। मुझे लगा कि ढक्कन खोलने में उन्हें मुश्किल आ रही है तो मैंने शिष्टाचार हेतु कहा...
"लाइए, मैं खोल देता हूं।"
सज्जन ने मेरी ओर देखा, फिर मुस्कुराते हुए कहने लगे, "बेटा ढक्कन तो मुझे ही खोलना होगा।"
मैंने कुछ पूछा नहीं, लेकिन सवाल भरी निगाहों से उनकी ओर देखा।
यह देख, सज्जन ने आगे कहा, "बेटा, आज तो आप खोल देंगे। लेकिन अगली बार? कौन खोलेगा?
इसलिए मुझे खुद खोलना आना चाहिए।"
पत्नी भी पति की ओर एकटक देख रही थीं। जूस की बोतल का ढक्कन उनसे अभी भी नहीं खुला था। पर पति लगे रहे और बहुत बार कोशिश कर के उन्होंने ढक्कन खोल ही दिया।
दोनों आराम से जूस पीने लगे ।
मुझे दिल्ली से पुणे की इस उड़ान में ज़िंदगी का एक अहम सबक मिला।
सज्जन ने मुझे बताया कि उन्होंने ये नियम बना रखा है कि अपना हर काम वो खुद करेंगे। घर में बच्चे हैं, भरा पूरा परिवार है। सब प्रेमपूर्वक साथ ही रहते हैं। पर अपनी रोज़ की ज़रूरत के लिये वे सिर्फ पत्नी की मदद ही लेते हैं, बाकी किसी की नहीं। वो दोनों एक दूसरे की ज़रूरतों को समझते हैं
सज्जन ने मुझसे कहा, "मेरा मानना है कि जितना संभव हो, अपना काम खुद करना चाहिए। एक बार अगर काम करना छोड़ दूंगा, दूसरों पर निर्भर हुआ तो समझो बेटा कि बिस्तर पर ही पड़ जाऊंगा। फिर मन हमेशा यही कहेगा कि ये काम इससे करा लूं, वो काम उससे।"
"फिर तो चलने के लिए भी दूसरों का सहारा लेना पड़ेगा। अभी चलने में पांव कांपते हैं, खाने में भी हाथ कांपते हैं, पर जब तक आत्मनिर्भर रह सको, रहना चाहिए।"
"अभी हम पुणे जा रहे हैं, दो दिन वहीं रहेंगे। हम महीने में एक दो बार ऐसे ही घूमने निकल जाते हैं। बेटे-बहू कहते हैं कि अकेले मुश्किल होगी, पर उन्हें कौन समझाए कि मुश्किल तो तब होगी जब हम घूमना-फिरना बंद करके खुद को घर में कैद कर लेंगे।"
"पूरी ज़िंदगी खूब काम किया। अब सब बच्चों को सौंप कर अपने लिए महीने के पैसे तय कर रखे हैं। और हम दोनों उसी में आराम से घूमते हैं। जहां जाना होता है एजेंट टिकट बुक करा देते हैं। घर पर टैक्सी आ जाती है। वापिसी में एयरपोर्ट पर भी टैक्सी ही आ जाती है। होटल में कोई तकलीफ होनी नहीं है।"
"स्वास्थ्य, उम्रनुसार, एकदम ठीक है। कभी-कभी जूस की बोतल ही नहीं खुलती। पर थोड़ा दम लगाओ, तो वो भी खुल ही जाती है।"
यह कहकर वो बुजुर्ग मुस्कुरा दिए।
मेरी तो आखेँ ही खुल की खुली रह गई।
मैंने तय किया था कि इस बार की उड़ान में लैपटॉप पर एक पूरी फिल्म देख लूंगा। पर यहां तो मैंने जीवन की फिल्म ही देख ली। एक वो फिल्म जिसमें जीवन जीने का संदेश छिपा था।
जब तक हो सके, आत्मनिर्भर रहिये। अपना काम, जहाँ तक संभव हो, स्वयं ही कीजिये।
सज्जन की उम्र करीब 80 साल रही होगी। मैंने पूछा नहीं लेकिन उनकी पत्नी भी 75 पार ही रही होंगी। उम्र के असर को छोड़ दें, तो दोनों करीब करीब फिट लग रहे थे।
उड़ान भरने के साथ ही पत्नी ने कुछ खाने का सामान निकाला और पति की ओर किया। पति कांपते हाथों से धीरे-धीरे खाने लगे। फिर फ्लाइट में जब भोजन सर्व होना शुरू हुआ तो उन लोगों ने राजमा-चावल का ऑर्डर किया। दोनों बहुत आराम से राजमा-चावल खाते रहे। मैंने पता नहीं क्यों पास्ता ऑर्डर कर दिया था। खैर, मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है कि मैं जो ऑर्डर करता हूं, मुझे लगता है कि सामने वाले ने मुझसे बेहतर ऑर्डर किया है।
अब बारी थी कोल्ड ड्रिंक की। पीने में मैंने कोका कोला का ऑर्डर दिया था। अपने कैन के ढक्कन को मैंने खोला और धीरे-धीरे पीने लगा।
उन सज्जन ने कोई जूस लिया था। खाना खाने के बाद जब उन्होंने जूस की बोतल के ढक्कन को खोलना शुरू किया तो ढक्कन खुले ही नहीं। सज्जन कांपते हाथों से उसे खोलने की कोशिश कर रहे थे। मैं लगातार उनकी ओर देख रहा था। मुझे लगा कि ढक्कन खोलने में उन्हें मुश्किल आ रही है तो मैंने शिष्टाचार हेतु कहा...
"लाइए, मैं खोल देता हूं।"
सज्जन ने मेरी ओर देखा, फिर मुस्कुराते हुए कहने लगे, "बेटा ढक्कन तो मुझे ही खोलना होगा।"
मैंने कुछ पूछा नहीं, लेकिन सवाल भरी निगाहों से उनकी ओर देखा।
यह देख, सज्जन ने आगे कहा, "बेटा, आज तो आप खोल देंगे। लेकिन अगली बार? कौन खोलेगा?
इसलिए मुझे खुद खोलना आना चाहिए।"
पत्नी भी पति की ओर एकटक देख रही थीं। जूस की बोतल का ढक्कन उनसे अभी भी नहीं खुला था। पर पति लगे रहे और बहुत बार कोशिश कर के उन्होंने ढक्कन खोल ही दिया।
दोनों आराम से जूस पीने लगे ।
मुझे दिल्ली से पुणे की इस उड़ान में ज़िंदगी का एक अहम सबक मिला।
सज्जन ने मुझे बताया कि उन्होंने ये नियम बना रखा है कि अपना हर काम वो खुद करेंगे। घर में बच्चे हैं, भरा पूरा परिवार है। सब प्रेमपूर्वक साथ ही रहते हैं। पर अपनी रोज़ की ज़रूरत के लिये वे सिर्फ पत्नी की मदद ही लेते हैं, बाकी किसी की नहीं। वो दोनों एक दूसरे की ज़रूरतों को समझते हैं
सज्जन ने मुझसे कहा, "मेरा मानना है कि जितना संभव हो, अपना काम खुद करना चाहिए। एक बार अगर काम करना छोड़ दूंगा, दूसरों पर निर्भर हुआ तो समझो बेटा कि बिस्तर पर ही पड़ जाऊंगा। फिर मन हमेशा यही कहेगा कि ये काम इससे करा लूं, वो काम उससे।"
"फिर तो चलने के लिए भी दूसरों का सहारा लेना पड़ेगा। अभी चलने में पांव कांपते हैं, खाने में भी हाथ कांपते हैं, पर जब तक आत्मनिर्भर रह सको, रहना चाहिए।"
"अभी हम पुणे जा रहे हैं, दो दिन वहीं रहेंगे। हम महीने में एक दो बार ऐसे ही घूमने निकल जाते हैं। बेटे-बहू कहते हैं कि अकेले मुश्किल होगी, पर उन्हें कौन समझाए कि मुश्किल तो तब होगी जब हम घूमना-फिरना बंद करके खुद को घर में कैद कर लेंगे।"
"पूरी ज़िंदगी खूब काम किया। अब सब बच्चों को सौंप कर अपने लिए महीने के पैसे तय कर रखे हैं। और हम दोनों उसी में आराम से घूमते हैं। जहां जाना होता है एजेंट टिकट बुक करा देते हैं। घर पर टैक्सी आ जाती है। वापिसी में एयरपोर्ट पर भी टैक्सी ही आ जाती है। होटल में कोई तकलीफ होनी नहीं है।"
"स्वास्थ्य, उम्रनुसार, एकदम ठीक है। कभी-कभी जूस की बोतल ही नहीं खुलती। पर थोड़ा दम लगाओ, तो वो भी खुल ही जाती है।"
यह कहकर वो बुजुर्ग मुस्कुरा दिए।
मेरी तो आखेँ ही खुल की खुली रह गई।
मैंने तय किया था कि इस बार की उड़ान में लैपटॉप पर एक पूरी फिल्म देख लूंगा। पर यहां तो मैंने जीवन की फिल्म ही देख ली। एक वो फिल्म जिसमें जीवन जीने का संदेश छिपा था।
जब तक हो सके, आत्मनिर्भर रहिये। अपना काम, जहाँ तक संभव हो, स्वयं ही कीजिये।
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