जो जिंदा हो, तो फिर जिंदा नज़र आना ज़रूरी है


Idle Sunday morning is perfect time to get into shayarana mizaz; here is  some delicious shayari from Wasim Barelavi to enjoy with your morning  cuppa tea: 

कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है,

ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है


चाहे जितना भी बिगड़ जाए ज़माने का चलन,

झूट से हारते देखा नहीं सच्चाई को


उसूलों पे जहाँ आंच आये, टकराना जरुरी है,

जो जिंदा हो, तो फिर जिंदा नज़र आना ज़रूरी है


हादसों की ज़द पे है, तो क्या मुस्कुराना छोड़ दें,

ज़लज़लों के खौफ से क्या घर बनाना छोड़ दें


सलीका ही नहीं शायद उसे महसूस करने का,

जो कहता है खुदा  है तो नज़र आना ज़रूरी है


मिली हवाओं में उड़ने की वो सजा यारों,

के मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों


तू तो नफरत भी न कर पायेगा इस शिद्दत के साथ,

जिस बला का प्यार तुझसे बेखबर मैंने किया

Ameer Meenai - A shayar who inspired Ghalib

 


The following ghazal will bring a smile on your face if you are a Jagjeet Singh fan. Did you know that Ameer Meenai wrote it?

सरकती जाए है रुख से नकाब आहिस्ता आहिस्ता

निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता

हमारे और तुम्हारे प्यार में बस फर्क है इतना

इधर तो जल्दी जल्दी है उधर आहिस्ता आहिस्ता


Another popular ghazal from him:

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूं

ढुंढने उसको चला हूँ जिसे पा भी न सकूं

मेहरबान होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त

मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी ना सकूं

 

Here is one more:

हंस के फरमाते हैं वो देख कर हालत मेरी

क्यों तुम आसान समझते थे मुहब्बत मेरी

यार पहलू में है तन्हाई है कह दो निकले

आज क्यों दिल में छुपी बैठी है हसरत मेरी