जो जिंदा हो, तो फिर जिंदा नज़र आना ज़रूरी है


Idle Sunday morning is perfect time to get into shayarana mizaz; here is  some delicious shayari from Wasim Barelavi to enjoy with your morning  cuppa tea: 

कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है,

ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है


चाहे जितना भी बिगड़ जाए ज़माने का चलन,

झूट से हारते देखा नहीं सच्चाई को


उसूलों पे जहाँ आंच आये, टकराना जरुरी है,

जो जिंदा हो, तो फिर जिंदा नज़र आना ज़रूरी है


हादसों की ज़द पे है, तो क्या मुस्कुराना छोड़ दें,

ज़लज़लों के खौफ से क्या घर बनाना छोड़ दें


सलीका ही नहीं शायद उसे महसूस करने का,

जो कहता है खुदा  है तो नज़र आना ज़रूरी है


मिली हवाओं में उड़ने की वो सजा यारों,

के मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों


तू तो नफरत भी न कर पायेगा इस शिद्दत के साथ,

जिस बला का प्यार तुझसे बेखबर मैंने किया

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