समस्याओं से लड़ना क्यूँ?

 


एक बार की बात है जापान में एक बहुत बड़ा योद्धा था। उसकी तलवार चलाने की कला का कोई मुकाबला न था। पूरे इलाके में उसकी धाक थी। उसके नाम से लोग कांपते थे। बड़े-बड़े तलवार चलाने वाले उसके सामने क्षणों में धूल-धूसरित हो गए थे। 

एक रात ऐसा हुआ कि योद्धा घर लौटा, अपनी तलवार उसने टांगी खूंटी पर, तभी उसने देखा कि एक चूहा उसके बिस्तर पर बैठा है। वह बहुत नाराज हो गया। योद्धा आदमी! उसने गुस्से में तलवार निकाल ली, क्योंकि गुस्से में वह और कुछ करना जानता ही न था। न केवल चूहा बैठा रहा तलवार को देखता, बल्कि चूहे ने इस ढंग से देखा कि योद्धा अपने आपे के बाहर हो गया। चूहा और यह हिम्मत? और चूहे ने ऐसे देखा कि जा जा, तलवार निकालने से क्या होता है? मैं कोई आदमी थोड़े ही हूं जो डर जाऊं? उसने क्रोध में उठा कर तलवार चला दी। चूहा छलांग लगा कर बच गया। बिस्तर कट गया। अब तो क्रोध की कोई सीमा न रही। अब तो अंधाधुंध चलाने लगा तलवार वह जहां चूहा दिखाई पड़े। और चूहा भी गजब का था। वह उचके और बचे। पसीना-पसीना हो गया योद्धा और तलवार टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो गई। और चूहा फिर भी बैठा था। वह तो घबड़ा गया; समझ गया कि यह कोई चूहा साधारण नहीं है, कोई प्रेत, कोई भूत। क्योंकि मुझसे बड़े-बड़े योद्धा हार चुके हैं और एक चूहा नहीं हार रहा!

अब योद्धा एक बात है और चूहा बिलकुल दूसरी बात है। वह घबड़ा कर बाहर आ गया। उसने जाकर अपने मित्रों को पूछा कि क्या करूं? उन्होंने कहा, तुम भी पागल हो! चूहे से कोई तलवार से लड़ता है? अरे, एक बिल्ली ले जाओ, निबटा देगी। हर चीज की औषधि है। और जहां सूई से काम चलता हो वहां तलवार चलाओगे, मुश्किल में पड़ जाओगे। बिल्ली ले जाओ।

लेकिन योद्धा की परेशानी और चूहे की तेजस्विता की कथा गांव भर में फैल चुकी। बिल्लियों को भी पता चल गई। बिल्लियां भी डरीं। क्योंकि उनका भी आत्मविश्वास खो गया। इतना बड़ा योद्धा हार गया जिस चूहे से! पकड़-पकड़ कर बिल्लियों को लाया जाए। बिल्लियां बड़ा मुश्किल से; दरवाजे के बाहर ही अपने को खींचने लगें; बामुश्किल उनको भीतर करें कि वे भीतर चूहे को देख कर बाहर आ जाएं। एक-दो बिल्लियों ने झपटने की भी कोशिश की, लेकिन उन्होंने पाया कि चूहा झपट्टा उन पर मारता है। यह चूहा अजीब था, क्योंकि चूहा कभी बिल्ली पर झपट्टा नहीं मारता जब तक कि उसको कोई शराब न पिला दी गई हो, जब तक वह होश के बाहर न हो जाए। और चूहा अगर बिल्ली पर झपटे तो बिल्ली का आत्मविश्वास खो जाता है।

तो सारी बिल्लियां इकट्ठी हो गईं। उन्होंने कहा, हमारी इज्जत का भी सवाल है। योद्धा तो एक तरफ रहा, हारे न हारे, हमें कुछ लेना-देना नहीं; ऐसे भी हमारा कोई मित्र न था; चूहे ने ठीक ही किया। मगर अब हमारी इज्जत दांव पर लगी है; अब हम क्या करें? एक दफा अगर हम हार गए और गांव के दूसरे चूहों को पता चल गया, तो यह सब  प्रतिष्ठा की ही बात होती है। एक दफा पोल खुल जाए तो बहुत मुश्किल हो जाती है। अगर दूसरे चूहे भी हमला करने लगे तो हम तो गए, कहीं के न रहे। इस योद्धा ने तो हमें ही डुबा दिया।

राजा के महल में एक बिल्लियों की गुरु थी, तो उन सब ने  उससे प्रार्थना की कि अब तुम्हीं कुछ करो। उसने कहा, तुम भी पागल हो। इसमें करने जैसा क्या है? मैं अभी आई। वह बिल्ली आई; वह भीतर गई; उसने चूहे को पकड़ा और बाहर ले आई। बिल्लियों ने पूछा कि तुमने किया क्या? उसने कहा, कुछ करने की जरूरत है? मैं बिल्ली हूं, वह चूहा है; बात खतम। इसमें तुमने करने का सोचा कि तुम मुश्किल में पड़ोगे। क्योंकि करने का मतलब हुआ कि डर समा गया। उसका स्वभाव चूहे का है और मेरा स्वभाव बिल्ली का है; बात खतम। हमारा काम पकड़ना है और उसका काम पकड़ा जाना है। यह तो स्वाभाविक है। इसमें कुछ लेना-देना नहीं है। इसमें कुछ करना नहीं है। न इसमें हम जीत रहे हैं, न इसमें वह हार रहा है। इसमें हार-जीत कहां? यह उसका स्वभाव है; यह हमारा स्वभाव है। दोनों का स्वभाव मेल खाता है; चूहा पकड़ा जाता है। तुमने स्वभाव के अतिरिक्त कुछ करने की कोशिश की। और चूहे से कहीं कोई लड़ कर जीता है? 

बिल्ली जिस दिन लड़े, समझना कि हार गई। लड़ने की शुरुआत ही हार की शुरुआत है।

समस्याओं से लड़ना क्यूँ ?  Zen  के जानकार कहते हैं, समस्याओं के साथ वही व्यवहार करना जो बिल्ली ने चूहे के साथ किया। चेतना का स्वभाव पर्याप्त है, होश काफी है। होश के मुंह में समस्या वैसे ही चली आती है जैसे बिल्ली के मुंह में चूहा चला आता है; इसमें कुछ करना नहीं पड़ता।

लेकिन तुम योद्धा बन कर तलवार लेकर खड़े हो जाते हो। दो कौड़ी की समस्या है; सूई की भी जरूरत न थी, तुम तलवार से लड़ने लगते हो। तो हारोगे ही।  

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