अहंकार का परिणाम है पतन

उर्दू के मशहूर शायर 'आतिश ' का एक शेर है :

काश ! ये जमशेद को मालूम होता जाम में ,
कासा - - सर कासा - - दस्ते - गदा हो जाएगा।

जमशेद ईरान का एक प्रसिद्ध बादशाह था। उसके पास एक ऐसा प्याला था , जिसमें वो सारे संसार के भूत , भविष्य और वर्तमान का हाल जान लेता था। कहते हैं कि उसकी मौत के बाद उसकी खोपड़ी को एक भिखारी भिक्षापात्र के रूप में इस्तेमाल करता था। 'आतिश ' इस शेर में कहते हैं कि काश! जमशेद अपने मशहूर जाम (प्याले) से अपने बारे में भी ये पता लगा लेते कि उनका कासा - - सर (खोपड़ीनुमा कटोरा) कासा - - दस्ते - गदा (भिखारी के हाथ का कटोरा) बन जाएगा।

हम सब की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। चाहे वो एक सफल राजनितिक पार्टी हो, कोई सफल धनवान, कोई लोकप्रिय कलाकार, या कोई प्रभावी नेता - सब अपने आप को सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान समझने की भूल करते हैं और अपने ज्ञान, अपनी ताकत के सामने किसी को कुछ नहीं समझते। सबको एक दिन इस नश्वर संसार से विदा हो जाना है। फिर भी अपने लिए ऐसा मुकम्मल बंदोबस्त करने की कोशिश करते हैं, मानों सदा के लिए यहीं रहना है। यह अल्पज्ञता और अहंकार नहीं तो और क्या है ?

इराक, मिस्र ओर लीबिया के तानाशाह शासकों का जैसा अंत हुआ वह किसी से छुपा नहीं है। लीबिया का राष्ट्रपति कर्नल मुअम्मर गद्दाफी जैसा शक्तिशाली तानाशाह अपने अंतिम दिनों में जान बचाने के लिए छुपता फिरा, जूठन खाकर जीवित रहा और ऐसे जीवन की भीख मांगने के लिए भी रोया - गिड़गिड़ाया। लेकिन इसके बावजूद उसे भीख नहीं मिल पाई। मरना तो एक दिन सबको ही है, लेकिन ऐसी जिल्लत की जिंदगी और ऐसी मौत का क्या लाभ? क्या कारण है इस जिल्लत का?

आज जागृति बढ़ी है। जनता का तानाशाहों के विरुद्ध उठ खड़ा होना स्वाभाविक है। लेकिन तानाशाहों के इस कदर पतन का क्या कारण है? जो कई दशकों तक लोगों के दिलों पर शासन करते रहे, अचानक एक दिन कैसे उनके दिलों से उतर गए। उनके पतन का कारण है उनके अहंकार में हुई बेतहाशा वृद्धि। जैसे - जैसे उनकी ताकत बढ़ी, उनके गुरूर में भी इजाफा होता गया। ये वही लोग थे जो कभी स्वयं तानाशाहों का खात्मा कर सत्तासीन हुए थे और लोगों के दिलों पर राज करते थे। लेकिन जैसे ही सत्ता पर उनकी पकड़ मजबूत हुई, वैसे ही उनकी निरंकुशता और उनका अहंकार बढ़ने लगा।

इसी अहंकार का परिणाम है पतन। रावण और कंस जैसे बाहुबलियों के पतन का कारण राम अथवा कृष्ण की असीम शक्ति नहीं, अपितु रावण और कंस का स्वयं का अहंकार था। हम दूसरे की शक्ति से नहीं, बल्कि अपनी कमजोरी के कारण हारने को विवश होते हैं। अहंकार हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। अपने अहंकार के कारण ही हम पतन के गर्त में समा जाते हैं और जब तक हमें इसका पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

आज स्थिति ये है कि चार किताबें पढ़ लेने पर हम फूलकर इतने कुप्पा हो जाते हैं कि अपने को विद्वान और दूसरों को जाहिल समझने लगते हैं। चार पैसे क्या हो गए कि सारा संसार भिखारी नजर आने लगता है। शादी - ब्याह जैसे आयोजनों पर स्वजनों और आत्मीयों से बेगानों से भी खराब सलूक करने लगते हैं। अपने से कम आर्थिक हैसियत वाले रिश्तेदारों, मित्रों और परिचितों की उपेक्षा प्रारंभ हो जाती है। अपने से अच्छी आर्थिक हैसियत वालों की चापलूसी छद्म सम्मान तथा कम आर्थिक हैसियत वालों की उपेक्षा और अपमान सबसे बड़ा अहंकार और अल्पज्ञता है। यह पतन का सुनिश्चित मार्ग है। 

चाहे वह सामान्य व्यक्ति हो, अथवा सर्वशक्तिमान शासक, उसका अहंकार ही उसके पतन का मूल कारण है। जब तक हम लोगों के दिलों पर शासन करते रहेंगे , हमारे अस्तित्व को कोई खतरा नहीं हो सकता। लेकिन जैसे ही हम लोगों के दिमागों पर हावी होने का प्रयास करेंगे, हमारा पतन निश्चित है। 

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