उम्मीद के बारे में बड़े-बड़े शायरों ने लिखा है - आइये एक झलक देखते हैं -
फैज़ न जाने किसलिये उम्मीद्वार बैठा हूं इक ऎसी राह पे जो तेरी रह गुज़र भी नही
शकील यूँ तो हर शाम उम्मीदो पे गुज़र जाती थी आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
इकबाल
सौ सौ उम्मीदें बंधती हैं इक इक निगाह पर
मुझको न ऐसे प्यार से देखा करे कोई
फानी
कुछ काटी हिम्मत-ए-सवाल मे उम्र
कुछ उम्मीद-ए-जवाब मे गुज़री
गालिब
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
हमको जीने की भी उम्मीद नही
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