अपनी नसीहत पर खुद अमल ?


हाजी साहब की पूरा गाँव बहुत इज्ज़त करता था, क्यूंकि वे गाँव के सबसे समझदार बुज़ुर्ग थे। सभी अपनी समस्याओं को लेकर उनकी मदद के लिए आते। हाजी साहब भी स्वाभाव से परोपकारी थे - सबकी जैसे हो सके मदद करते थे।

एक दिन एक औरत अपने दस साल के बेटे को लेकर उनके पास आई और बोली - हाजी साहब, आप इसे समझाइए ज़रा - ये रात दिन खजूर खाता रहता है - किसी भी चीज़ की ज्यादती सेहत को नुकसान पहुंचा सकती है।

हाजी साहब ने लड़के की ओर देखा - तो लड़का बोला - क्या करूँ मुझे खजूर इतने अच्छे लगते हैं कि बार बार खाने का मन करता है।

हाजी साहब ने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा और कुछ सोचकर बोले - बहन, आप एक महीने बाद आना - तब मैं आपकी इस समस्या पर कुछ कर पाउँगा।

औरत कुछ समझ नहीं पाई - परन्तु उसे हाजी साहब की अक्लमंदी पर यकीन था, इसलिए बिना कुछ कहे वापस चली गयी।

एक महीने बाद माँ-बेटे वापस आये और आकर बैठ गए। इससे पहले की माँ कुछ कहती - हाजी साहब ने लड़के को पहचानते हुए कहा - बेटे, आप को खजूर बहुत खाने की आदत है न?

लड़के ने हामी में सर हिलाया।

हाजी साहब बोले - देखो बेटा, हद से ज्यादा हर चीज़ नुकसान देती है। तुम्हारा जब भी खजूर खाने का मन करे तो यह ज़रूर सोचना कि इससे मेरी सेहत बिगड़ सकती है। बेहतर होगा कि तुम ये तय कर लो की दिन में कितने खजूर खाने हैं और फिर उस नियम के हद में ही रहने की कोशिश करो - शुरू में मुश्किल होगा पर धीरे-धीरे आसान होता जायेगा। क्या तुम ये कर सकोगे?

लड़के ने कहा - जी हाजी साहब मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगा। 

इसके बाद माँ-बेटा चले गए।

हाजी साहब का शागिर्द जो उनके साथ ही बैठा था अपनी जिज्ञासा रोक नहीं पाया। उसने पूछा - माफ़ करें हाजी साहब, यही बात आप उसे एक महीने पहले भी बता सकते थे, फिर आपने एक महीने का वक़्त क्यूँ माँगा? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ।

हाजी साहब बोले - जब वो पहली बार मेरे पास आया और उसने बताया की उसे खजूर खाने की लत है, तो मुझे ये अहसास हुआ की मुझे खुद बहुत खजूर खाने की आदत है। इस एक महीने में मैंने पहले अपनी आदत पर काबू पाया, ताकि इस काबिल बन सकूँ कि लड़के को इस बारे में समझा सकूँ।

इस छोटी से कहानी में एक बड़ी सीख छुपी है - दूसरो को नसीहत देने से पहले ये ज़रूरी है कि हम खुद उस पर अमल करे। अपने व्यवहार को आदर्श बनाकर ही हम किसी को सीख देने की सोच सकते हैं। 

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