भरोसा जीतना है तो ये खंजर फेंकने होंगे - अशोक रावत


I am deeply impressed with the feeling of freshness in Ashok Rawat's work. 


भरोसा जीतना है तो ये खंजर फेंकने होंगे

किसी हथियार से अमनो-अमां कायम नही होता

 

एक दिन मज़बूरियाँ अपनी गिना देगा मुझे

जानता हूँ वो कहां जाकर दगा देगा मुझे

 

जुबां पर फूल होते हैं जेहन मे खार होते हैं

कहां दिल खोलने को लोग अब तैयार होते हैं

 

ये सारा वक़्त कागज़ मोडने मे क्यों लगाते हो

कहीं कागज़ की नावों से समंदर पार होते हैं

 

दुश्मनों से भी निभाना चाहते हैं

दोस्त मेरे क्या पता क्या चाहते हैं

 

वो दिया हूँ मै जिसे आंधी बुझायेगी ज़रूर

पर यहां कोइ न कोइ फिर जला देगा मुझे

 

उधर दुनिया कि कोइ ख्वाब सच होने नही देती

इधर कुछ ख्वाब हैं जो चैन से रहने नही देते


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