सूरज भी आखिर शाम को होता ढलान पर

भारत भूषण आर्य ने क्या खूब कहा है - हमेशा याद रखने के काबिल ख्याल:

सूरज भी आखिर शाम को होता ढलान पर,
पागल है फिर क्यूँ आदमी अपनी उडान पर।

कब आसमां ने पास से देखा ज़मीन को,
चर्चा हुई है दूर से कच्चे मकान पर।

ये अद्ल भी तो आपका क़ातिल से कम नही,
दिन को सुनाई क़ैद क्यूं शब के बयान पर।

वो कर्ज़ मुफलिस का किया पल मे माफ सब,
क्या चीज़ जाने देखकर उसने उठान पर।

उसके सिवा कोई नही गुज़रा गली से है,
वरना कहां से रोशनी मेरे मकान पर।

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